चंद्रेश्वर कर्ण हिंदी के ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने हिंदी कथा-आलोचना के क्षेत्र में गंभीरता के साथ काफी मात्रा में लिखा है। उन्होंने लगभग सभी स्थापित और महत्त्वपूर्ण रचनाकारों पर लिखा, सभी विवादों और कथा-कविता आंदोलनों पर लिखा और लगभग सभी विधाओं की विस्तार से समीक्षा की है। अपने समकालीन से लेकर नए-संभावनाशील व उपेक्षित रह गए रचनाकारों पर भी उन्होंने पूरी जिम्मेदारी के साथ लिखा और लेखक होने के दायित्वों-जिम्मेदारियों को प्रतिबद्ध आलोचक के रूप में स्वीकारते-समझते हुए तत्कालीन चिंताओं और सरोकारों से बाबस्ता सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर भी हस्तेक्षप किया है।
हजारीबाग जैसी छोटी जगह रहते हुए आलोचना के गंभीर साधक चंद्रेश्वर कर्ण ने कहानी, उपन्यास की अलोचना पर खुद को केंद्रित रखने के बावजूद महत्त्वपूर्ण कवियों और कविताओं पर भी लिखा। गंभीर आलोचक, निबंधकार, नाटककार, व्यंग्यकार और सामाजिक-राजनीति चिंतक-विचार पर भी उन्होंने समय-समय पर कम नहीं लिखा है। इसके अलावा कथेतर गद्य यथा आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, रिपोर्ताज, यात्रा-साहित्य, पत्र-साहित्य आदि पर भी उन्होंने अलग से और सुव्यवस्थित ढंग से लिखा है। लोक गाथा, लोक नृत्य, लोक संगीत, लोक-संस्कृति आदि को लेकर जो उनका गंभीर लेखन है, यह हिंदी के अन्य प्रचलित आलोचकों से उन्हें न मात्र अलग करता है, विशिष्ट भी बनाता है।

खण्ड - 1
1982 में प्रकाशित 'हिंदी कहानी की भूमिका’, 1977 में प्रकाशित 'आंचलिक हिंदी कहानी’ पुस्तकों के अलावा कहानी-आलोचना से संबंधित अब तक असंकलित रहे करीब दो दर्जन लेख।
1982 में प्रकाशित 'हिंदी कहानी की भूमिका’, 1977 में प्रकाशित 'आंचलिक हिंदी कहानी’ पुस्तकों के अलावा कहानी-आलोचना से संबंधित अब तक असंकलित रहे करीब दो दर्जन लेख।
खण्ड - 2
यह खंड उपन्यास-आलोचना पर केंद्रित है। इस खंड में गोदान पर केंद्रित 1997 में प्रकाशित पुस्तक 'गोदान : संवेदना और शिल्प’, 1981 में प्रकाशित 'उपन्यासकार अश्क’ के अलावा विभिन्न अवसरों पर लिखे उपन्यास आलोचना से संदर्भित करीब दो दर्जन असंकलित लेख हैं।
खण्ड - 3
इस खंड में छ: शीर्षस्थ रचनाकारों पर केंद्रित आलोचना को शामिल किया गया है। ये रचनाकार हैं : पे्रमचंद, निराला, रामवृक्ष बेनीपुरी, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ 'रेणु’ और राजकमल चौधरी। इन रचनाकारों पर यहाँ समग्रता में विचार किया गया है।
खण्ड - 4
इस खंड में हैं : विचार और विश्लेषण (वैचारिक आलोचना), हिंदी की कथेतर साहित्यिक विधाएँ, कविता आलोचना, नाट्ïयालोचना, लोक-जीवन : नृत्य-संगीत और कला-संस्कृति और लेखक द्वारा लिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण साक्षात्कार।
खण्ड - 5
यह खंड मुख्यत: चंद्रेश्वर कर्ण की मौलिक रचनाओं पर केंद्रित है। इसमें कर्ण जी की उपन्यासिका ('खंडित प्रतीक्षा’), कहानियाँ, लघुकथाएँ, कविताएँ, झारखंड की लोक कथाएँ, महाभारत की कथाएँ, बालकथाएँ, चिंतन, संस्मरण, डायरी और पत्रों को संकलित किया गया है। साथ में कुछ महत्त्वपूर्ण चित्र और हस्तलिपि भी हैं।
मूल्य (पॉंच खण्डों का संपूर्ण सेट) : 4200.00
मूल्य (पॉंच खण्डों का संपूर्ण सेट) : 4200.00
चंद्रेश्वर कर्ण
जन्म 2 अक्टूबर, 1940 को सीतामढ़ी (बिहार) में हुआ। साहित्य की तरफ बचपन में ये अपने चाचा कवि दीनेश्वर प्रसाद 'दीनेश’ के संपर्क में आए। कई वर्षों तक 'पलामू दर्पण’ और हलधर पत्रिका के 'लोहिया स्मृति अंक’ का संपादन। 'हिंदी नई कहानी का स्वरूप और जीवन-बोध’ विषय पर 1975 ई. में इन्हें पी-एच.डी. की उपाधि मिली। 1977 ई. में इनकी पहली पुस्तक 'आंचलिक हिंदी कहानी’ प्रकाशित हुई जो इस विषय पर हिंदी की पहली पुस्तक थी।
प्रकाशित आलोचनात्मक पुस्तकें : 'आंचलिक हिंदी कहानी’ (1977), 'उपन्यासकार अश्क’ (1981), 'हिंदी कहानी की भूमिका’ (1982), 'गोदान : संवेदना और शिल्प’ (1997)।
संपादित पुस्तकें : 'अभिज्ञान-पत्र’ (1968), 'स्मृति रेखा’ (1993), 'कथा-भूमि’ (1993), 'राहुल-स्मृति’ (1993), 'आलोचना के मानदंड’ (1995), 'स्मृति बिंब’ (1997), 'डॉ. जगदीश्वर प्रसाद : जीवन और साहित्य’ (1998)।
लघु उपन्यास : 'खंडित प्रतीक्षा’ (1997)
संपर्क : 'दीनेशायन’, न्यू कॉलोनी, कोर्रा, हजारीबाग
युवा कथाकार-समालोचक श्रीधरम का जन्म 18 नवम्बर, 1974 को चनौरा गंज, (मधुबनी, बिहार) में हुआ। मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा से हिंदी-साहित्य में एम.ए., जामिया मिल्लिया इस्लामिया से एम.फिल. और भारतीय भाषा केन्द्र, जे.एन.यू. से 'नागार्जुन के साहित्य में स्त्री-स्वाधीनता का प्रश्न' विषय पर पीएच.डी.।
कई कहानियाँ और वैचारिक-आलोचनात्मक लेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित-चर्चित। हिंदी के अलावा मातृभाषा मैथिली में भी समान गति से सक्रिय। हिंदी त्रैमासिक 'बया', हिंदी मासिक 'कथादेश' और मैथिली त्रैमासिक 'अंतिकाÓ आदि पत्रिकाओं के संपादन से संबद्ध रहे।
'स्त्री : संघर्ष और सृजन' (2008), 'महाभारत' (पाठ्य-पुस्तक, 2007), 'स्त्री स्वाधीनता का प्रश्न और नागार्जुन के उपन्यास' (2011) प्रकाशित। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा विदेशी छात्रों के लिए प्रकाशित पाठ्ïय-पुस्तक 'हिन्दी का इतिहास' (2007) का सह-लेखन एवं संपादन। शम्भुनाथ द्वारा संपादित पुस्तक '1857, नवजागरण और भारतीय भाषाएँ' (2008) में संपादन सहयोग। शीघ्र प्रकाश्य 'चन्द्रेश्वर कर्ण रचनावली' (पाँच खण्ड) का संपादन। 'नवजात (क) कथा' (कहानी-संग्रह) प्रकाश्य।
हिन्दी-मैथिली दोनों भाषाओं के कई महत्त्वपूर्ण चयनित संकलनों में कहानियाँ संकलित। कुछ कहानियाँ अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनूदित-प्रकाशित।
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, आगरा में विदेशी छात्रों एवं हिन्दीतर प्रदेश के अध्यापकों के बीच अध्यापन-प्रशिक्षण। सम्प्रति, गुरु नानक देव खालसा कॉलेज, देवनगर (दिल्ली विश्वविद्यालय) में असिस्टेंट प्रोफेसर (तदर्थ)।
ई-मेल : sdharam08@gmail.com





