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| ISBN 978-83-80044-84-2 Rs. 200/- INR (HB) |
कविता में खासतौर से स्मृति अप्रत्याशित काम करती है और इस तरह कल्पना का रूप ले लेती है कि उसमें लौटना 'किसी भूगोल या समय में नहीं', बल्कि कल्पना में आगे जाना बन जाता है। हो सकता है यह एक असंभव वापसी हो और ऐसी जगहों पर जाना हो जिनसे 'शायद मिलना नहीं होगा।' लेकिन यह ऐसी संवेदना है जो अतीत के मोह से ग्रस्त नहीं होती, भावुकता में विसर्जित नहीं होती, बल्कि जीवन की सार्थकता और सामथ्र्य बन जाती है। सुषमा नैथानी के पहले ही संग्रह की ज़्यादातर कविताओं में स्मृति के ऐसे आयाम दिखाई देते हैं। यहाँ एक प्रवासी संवेदना की, अपनी अंतर्भूमि से दूर जाने, वहाँ से अतीत को देखने और उसकी ओर लौटने की भी एक उड़ान है। आपस में घुलते-मिलते-विलोप हो जाते क्षणों, परिचयों और मित्रताओं से बनी हुई एक पूरी पृथ्वी है जहाँ बचपन के स्कूल के बिंब दूर देश में अपने बच्चे के लिए स्कूल की तलाश से जुड़ जाते हैं, पहाड़ के जंगलों-खेतों और भूख की कहानी भूमंडलीकरण में 'ग्लोबल होते जाते मुनाफे' से टकराने लगती है। इन कविताओं में छूटे हुए पहाड़ के बिंब घटाटोप बादलों की तरह छाये हुए हैं, लेकिन उनके बरसने के बाद यह पृथ्वी ज़्यादा साफ और चमकीली दिखाई देती है। 'बित्ते भर जगह में जंगली बकरी सी चढ़ती-उतरती औरतों' से लेकर 'अनगिनत युद्धों के काले दस्तखत' तक फैली हुई कविता समय-काल को लाँघने की कोशिश करती है और जिसका लौटना संभव नहीं है उसे अपनी उम्मीद में लौटते हुए देखती है और इस तरह अपनी स्मृति को देखना भी बन जाती है। एक नई तरह की और परिपक्व भाषा में विन्यस्त यह संवेदना 'अपने अंतर में बसी सुगंध से अपने छत्ते की शिनाख्त करती मधुमक्खियों' जैसी सहजता और 'करीने से सजे हुए बाग के बीच बुरांश के घने दहकते जंगल जैसी कौंध' से भरी हुई है।
—मंगलेश डबराल
परिचय
सुषमा नैथानी
जन्म : 1972, पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
बचपन से खानाबदोशी का जीवन रहा है। स्कूली शिक्षा उत्तराखंड के कई छोटे शहरों में। बाद की पढ़ाई नैनीताल, बड़ौदा और लखनऊ में। 1998 से अमरीका में, जेनेटिक्स में शोध और अध्यापन। लिखना मेरे लिए खुद से बातचीत करने की तरह है, मन की कीमियागिरी है, और इस लिहाज से बेहद निजी, अंतरंग जगह लिखना फिर अपनी निजता के इस माइक्रोस्कोपिक फ्रेम के बाहर एक बड़े स्पेस में, अपने परिवेश, अपने समय के संदर्भ को समझना, अपनी बनीबुनी समझ को खंगालना भी है और संवाद की कोशिश भी। हिन्दुस्तानी में लिखते रहना अपनी भाषा, समाज और ज़मीन में साँस लेते रह सकने का सुकूँ है, जुड़े रहने का एक पुल है।
संपर्क : sushma.naithani@gmail.com
वेबसाइट : http://swapandarshi.blogspot.com


